महाभारत की गाथा में वैसे तो वीर से वीर तथा महापराक्रमी योद्धाओं का उल्लेख किया गया है लेकिन, उनमें एक योद्धा ऐसा भी था जो यदि युद्ध भूमि में शामिल होता तो आज महाभारत का इतिहास कुछ ऐसा होता जिसकी हम कल्पना भी नहीं करना चाहेंगे। यह यशस्वी योद्धा कोई और नहीं बल्कि श्याम बाबा थे, जिन्हें महाभारत काल में बर्बरीक के नाम से जाना जाता था। बर्बरीक, पांचों पांडवों में परम बलशाली भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक अपने बचपन से ही एक कुशल और वीर योद्धा थे और ऐसा कहा जाता है कि युद्ध कला उन्होंने अपनी माता अहिलावती से सीखी थी। बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की जिससे भगवान शिव जी ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को तीन अमोघ बाण प्रदान किया था। इसलिए बर्बरीक को “तीन बाण धारी” के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा अग्निदेव ने प्रसन्न होकर बर्बरीक को एक धनुष भी प्रदान किया था, जो उसे तीनों लोकों में विजयी बनाने में समर्थ थे।
जब बर्बरीक को यह पता चला कि पांडवों और कौरवों में युद्ध अटल है, तब वे स्वयं महाभारत युद्ध का साक्षी बनने के लिए कुरुक्षेत्र की तरफ चल पड़े। परंतु, कुरुक्षेत्र की ओर जाने से पहले उन्होंने अपनी माता को यह वचन दिया कि युद्ध भूमि में, जिसकी सेना अधिक निर्बल होगी वे उसी के पक्ष से युद्ध में भाग लेंगे। अपनी माता को यह वचन देकर बर्बरीक अपने नीले घोड़े पर सवार हो गए और अपने तीनों बाण लेकर कुरुक्षेत्र रणभूमि की ओर निकल पड़े।
जब भगवान श्री कृष्ण को यह ज्ञात हुआ कि बर्बरीक भी युद्ध में भाग लेने आ रहा है और कौरवों की निर्बल सेना को देखते हुए वह अवश्य ही कौरवों का साथ देगा, जिससे महाभारत का युद्ध संपूर्ण रूप से एकतरफ़ा हो जाएगा और जीत कौरवों की होगी। तब भगवान श्री कृष्ण जी कुरुक्षेत्र में पहुंचने के पहले ही बर्बरीक से मिलने ब्राह्मण रूप में गए और वहां उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया।
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श्री कृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी कि केवल तीन बाण से भला वे युद्ध में विजय कैसे पा सकते हैं? यह सुनकर बर्बरीक ने ब्राह्मण के भेष में आए श्री कृष्ण भगवान को अपनी शक्तियों पर विश्वास दिलाते हुए कहा कि वे अपने केवल एक बाण से ही वहां पर मौजूद एक पीपल के पेड़ के सारे पत्तों में भेदन कर सकते हैं। जब बर्बरीक ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए अपने तुणीर से बाण निकाला, उसी समय श्री कृष्ण ने बर्बरीक को पता लगे बिना पीपल के उस पेड़ की एक पत्ती तोड़कर अपने पैरों के नीचे छुपा लिया। जब बर्बरीक ने बाण चलाया तब पीपल के सभी पत्तों में छेद हो गया और अंत में वह बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के पास आकर वह रुक गया। इससे आश्चर्यचकित होकर श्री कृष्ण जी ने पूछा “आखिर यह बाण आकर मेरे पैरों के ऊपर क्यों रुक गया?” तब बर्बरीक ने कहा कि “शायद आपके पैर के नीचे उस पीपल की पत्ती रह गई है और उसी पत्ती को निशाना बनाने के लिए यहां बाण आपके पैर के ऊपर आकर रुक गया है, इसलिए हे ब्राह्मण राज, आप अपना पैर वहां से हटा लीजिए अन्यथा यह बाण आपके पैर को भेद देगा।” अतः श्री कृष्ण के पैर हटाते ही उनके पैर के नीचे छुपे हुए पत्ते पर बर्बरीक के बाण ने छेदन कर दिया।
भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के इस पराक्रम को देख बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि तुम इस युद्ध में किसके पक्ष से भाग लेने जा रहे हो? इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उन्होंने अभी तक किसी पक्ष का निर्धारण नहीं किया है परंतु, अपनी माता को दिए हुए वचन के अनुसार जो पक्ष अधिक निर्बल होगा उसी की ओर से युद्ध लड़ेंगे। भगवान श्री कृष्ण यह जानते थे कि युद्ध में कौरवों की हार निश्चित है, लेकिन अगर बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो अधर्म के विरुद्ध इस महायुद्ध में परिणाम गलत पक्ष में चला जाएगा और अंततः कौरवों की जीत होगी। तब ब्राह्मण के रूप में आए श्री कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान की अभिलाषा व्यक्त की। बर्बरीक ने उन्हें वचन दिया और कहा कि “हे ब्राह्मण देवता, आपकी जो भी इच्छा हो, मैं आपको देने के लिए तैयार हूं। “तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक का शीश ही दान स्वरूप मांग लिया।
बर्बरीक एक साधारण ब्राह्मण की इस अनोखी मांग को सुनकर अचंभित हो उठे और ब्राह्मण राज से उनको अपने वास्तविक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक की प्रार्थना स्वीकार की और उन्हें अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराया।
बर्बरीक ने अपना वचन निभाते हुए एक वीर की भांति अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को समर्पित कर दिया। परंतु, अपने शीश का बलिदान करने से पहले बर्बरीक ने महाभारत युद्ध को अंतिम तक देखने की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्री कृष्ण बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक की यह इच्छा पूरी की और उनके कटे हुए शीश को एक ऊंचे पहाड़ पर रख दिया जहां से पूरे कुरुक्षेत्र रणभूमि को साफ देखा जा सकता था। उसी स्थान से बर्बरीक के कटे हुए शीश ने पूरे महाभारत संग्राम को देखा था। साथ ही भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को उनके उस बलिदान के लिए यह वरदान दिया कि कलयुग में उन्हें श्याम नाम से पूजा जाएगा और संपूर्ण सृष्टि उन्हें शीश के दानी के रूप में याद रखेगी।